वो आखिरी दिन जब तुम मिले थे
तुम्हें शायद याद भी ना होगा
क्यूकी तुम जानते भी नहीं थे
कि वो आखिरी बार मिल रहे हो तुम।
अपने मुहब्बत से, अपनी चाहत से
जो हो गया था तुमसे गुमसुम।
कोशिश भी तो नहीं कि ना तुमने
जानने की वजह जो मैं हट सा गया था,
कट सा गया था। तुमसे या अपने वजूद से।
ये जो आखिर में अपने रिश्ते के
कुछ बाते मुझे समझ में आई
जो आनी नहीं थी।
मैं प्रौढ़ हो गया था समाज, संस्कार की बातों में;
अंत में मेरे अंदर बची जवानी नहीं थी।
तुम मेरे जाती कि नहीं हो
मेरे समाज कि नहीं हो
इसका आगे दुष्परिणाम होगा।
ये छोटी सोच मुझसे जीत गयी कि
मैं तुम्हें अपना बनालू सदा के लिए तो
मेरा नाम बदनाम होगा।
कितना मतलबी हो गया था
जो खुद के झूठे अहम के आगे
खुद के दिल कि सुना नहीं।
जब लड़ाई थी खुशियों की और परम्पराओं कि
तो मैंने खुशियों को चुना नहीं।
आज एक एक पल याद आता है
तेरी साथ बिताए पल का।
अफसोस होता है मुझे
उस बीते हुये कल का
जिसमे मैंने तुम्हें ठुकराया था।
जो तुम्हें खोकर
मुझे आजतक भी समझ नहीं आया
मैंने क्या पाया था।
कई बातें कहना चाहता हूँ
पर आखिरी बात सुनाता हूँ।
तुझे शायद यकीन होगा
तेरे अंदर एक नाराजगी होगी
कि मैं खुश होऊंगा तुझे छोड़ कर
तुझसे दूर जाकर
और अब मैं शायद तुम्हें याद भी
नहीं कर पता हूँ।
पर मैं बता दूँ
तू मोहब्बत थी मेरी
ज़िंदगी बन गयी है।
पर तेरे बिना एक पल भी
जो तुम्हें छोडकर जीता हूँ
जीता तो हूँ
पर मैं जानता हूँ
जी नहीं पाता हूँ।
वो जो आखिरी बार मिले थे तुम
आखिरी मुलाक़ात है हमारी।
कि फिए तुम कभी मिल नहीं पाओगे
इसका बिल्कुल भी हमे आभास नहीं था।
मैं तो बावला था पर
वो बताना भूल गए थे ना तुम
कि मैं दूर हो रहा हूँ।
अब तुम्हारे पास नहीं था।
क्या दुबारा तुम्हारे साथ
जीना का मौका मुझे ज़िंदगी देगी
या मैं तुम्हारे साथ जी पाऊँगा।
ये मेरे मन अक्सर खटकता सवाल हैं।
पर हर बार कि तरह ये मेरा स्वार्थ है
जो तुम्हारी भावनाओ का ख्याल कर नहीं पा रहा।
पर सच बताऊ आखिरी में
तुम्हारे बिना मेरा जीवन चल नहीं पा रहा।
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